Saturday, February 21, 2015

हमसफर

एक चाह की ज़िंदगी का सफर सुहाना हो...
उस हमदम की बाहों में अपना आशियाना हो.
मुस्कुरा उठा मैं यूहीं बेवजह...
बिन सोचे चल पड़ा हूँ इस राह.
मंज़िल की परवाह नहीं जब साथ तुम्हारा हो...
खिल उठता है राह जब हमसफर तुम सा प्यारा हो.

तेरी मुस्कुराहट आँखों के सामने हमेशा है रेहती
मेरे मन्न में तेरी खिलखिलाती हंसी है गूंजती
ओ मेरे खुदा...
ये खुशी ज़िंदगी भर के लिये क्यू नहीं...
शायद ज़िंदगी भर की खुशी एक पल में ही सही...
¿;-)